दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय मर चुकी संवेदनाएं

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गीत -मर चुकी संवेदनाएं ------------------------------ मंच से कुछ नामधारी व्यर्थ करते गर्जनाएं । लोग पत्थर के हुए हैं मर चुकी संवेदनाएं ।। रोज विष का पान करती रो रही गंगा हमारी ...

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